रचनाकार को त्रिकालदर्शी होना पहली और अनिवार्य शर्त है। सीमित दृष्टि रखने वाला चाहे जो भी हो सकता है, रचनाकार कभी नहीं।
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त्रिकाल में जिसकी दृष्टि का परास जितना बड़ा होता है वह उतना ही बड़ा रचनाकार कहलाता है।
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'रचनाकर्म' की परास केवल साहित्य तक ही नहीं मानी जानी चाहिए। वास्तु-शिल्प-चित्रकला-अभिनय से लेकर विज्ञान-भाषा-राजनीति-सामाजिकता सब इसी परास में ही आते हैं।
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Thursday, 7 January 2016
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विचार प्रवाह
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