Monday 5 September 2016

-: छ: :-

#आज_का_विचार

कथित आधुनिक विज्ञान इस चराचर सृष्टि को भी कोई फैक्ट्री उत्पाद मानते हुए पृथ्वी और पृथ्वी पर उपस्थित जीवन का प्रतिरूप खोजते भटकता फिर रहा है! ए मूर्ख! (जी हाँ...आज मैं विज्ञान का मानवीकरण करते हुए उसे मूर्ख कहने का दु:साहस कर रहा हूँ) इसी पृथ्वी पर जिसके हजारों वर्षों के मानव इतिहास को तू अपने ही मापदंड़ों पर स्वीकार करता है, उस इतिहास से लेकर मौजूदा संसार में भी जब तुझको किसी एक जीव का भी प्राकृतिक प्रतिरूप नहीं मिलता तो तू किस आधार पर अनंत ब्रह्माण्ड़ में पृथ्वी और पृथ्वीवासी मानव के प्रतिरूप हो सकने की कल्पना कर पाता है!!!

अरे प्रकृति तो रचनाकार है, कोई धनलोलुप व्यवसायी नहीं। जो अपने प्रत्येक आविष्कार/निर्माण को फैक्ट्रियों के हवाले कर धन-मान-यश-अवैध कब्जे जमाने के लिए उनका प्रयोग करे। उसकी प्रत्येक रचना मौलिक है।

अत: कुछ समझना है तो उसके विधान को समझ। बनना है तो उसका सहयोगी बन। करना है तो अपनी चेतना को विकसित कर प्रकृति के साथ साम्य प्राप्त कर। अन्यथा वह तो स्वभाव से बड़ी ही निर्मम रचनाकार है।