Friday 26 December 2014

सुना है!

कबीलों का नाम,
अब धर्म हो गया है।
सरदार कबीलों का,
अब ईश्वर हो गया है।
सुना है मानव,
अब बड़ा बुद्धिमान हो गया है!!

धर्म-ईश्वर,
अब व्यापार बन गया है।
बाजारों का,
अब ये हाल हो गया है।
शेष नैतिकता के,
यहाँ मिलता है सबकुछ।
नारी-शील,
सरे-राह नीलाम हो गया है।
सुना है मानव,
अब बड़ा बुद्धिमान हो गया है!!

घर भी,
अब एक बाजार हो गया है!
नाते - रिश्तों का,
अब ये हाल हो गया है।
नाम से अपने मगर,
एहसान खरीदते ओ एहसान बेचते हैं।
फर्ज का कर्ज,
चंद सिक्कों में तुल गया है!
सुना है मानव,
अब बड़ा बुद्धिमान हो गया है!!

मदिरा,
अब गुणकारी औषध बन गई है।
नदियाँ-झीलें,
अब पोखर बन गईं हैं।
वायु में,
अब घोल दिया है जहर।
फुनगी पेड़ की,
अब सूनी-लाचार हो गई है।
सुना है मानव,
अब बड़ा बुद्धिमान हो गया है!

खेतों में,
अब इमारतें उग आईं हैं।
मृदा,
अब प्राणहीन हो गई है।
कंक्रीट की,
अब बिछा दी गई है चादर।
गौधन,
अब मनुजाहार हो गया है।
सुना है मानव,
अब बड़ा बुद्धिमान हो गया है!

जाहिलों का लिखा,
अब साहित्य हो गया है।
बेसुरा सारा,
अब संगीत हो गया है।
वेदों में,
अब खोज डालीं हैं कमियां।
कुरान ईश्वर का,
अब अंतिम दस्तावेज़ हो गया है।
सुना है मानव,
अब बड़ा बुद्धिमान हो गया है!

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