बात यदि समर्पण की ही हो रही हो तो माँ को समर्पण से अधिक सुंदर तो शायद ही कुछ हो। अत: मेरी यह फायकू विधा भी माँ को ही समर्पित! वह माँ चाहे कोई शरीर धारी आत्मा हो या सर्वत्रमयी सनातन प्रकृति।
वैसे भी मेरा अपना मत है कि इस संसार में मनुष्य की केवल दो ही प्रेमिकाऐं हो सकतीं हैं- पहली 'माँ' और दूसरी 'स्वयं अपना आप' यानि 'आत्मा'।
इनके अतिक्त तो बाकि सब प्रेम के नाम का बस एक छलावा ही है।
1-
जब आई तेरी याद
लिखने बैठा माँ
तुम्हारे लिए!
2-
जग में मुझे बुलाया
माँ, जां कुर्बान
तुम्हारे लिए!
3-
तूने गोद मुझे खिलाया
कैसे धीर धरूँ
तुम्हारे लिए!
4-
तीन लोक बलिहारी माँ
शीश चरण धरूँ
तुम्हारे लिए!
5-
धन दौलत चीज क्या
जहाँ लुटाऊँ माँ
तुम्हारे लिए!
6-
धरती अंबर पर्वत सागर
कम लगते माँ
तुम्हारे लिए!
7-
सूरज चाँद सितारे माँ
मुझसे कम हैं
तुम्हारे लिए!
8-
चरण धरो तुम जहां
पलकें बिछाऊ माँ
तुम्हारे लिए!
9-
जब आई याद तुम्हारी
नीर बहा माँ
तुम्हारे लिए!
10-
अगर झुकेगी कमर तुमहारी
सहारा बनूँ माँ
तुम्हारे लिए!
11-
तेरा आँचल रहे सदा
दुआ करूँ यही
तुम्हारे लिए!
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