हाँ, मैं ब्रह्मा हूँ।
मैं ही प्रतिपल रचता हूँ
अनेकों ब्रह्माण्ड।
विभिन्न प्रतियां-कृतियां
मेरी ही कल्पनाऐं मात्र हैं
प्रतिक्षण
बनाता-मिटाता रहता हूँ
विभिन्न पात्र।
मेरे एक पल मे
बीत जाते हैं उनके
हजारों वर्ष-युग-कल्प।
मैं ही गढता रहता हूँ
उनके भूत-भविष्य
और वर्तमान भी।
सारे सुख-दुख, मिलन-विछोह
मेरी ही कल्पनाओं के
चित्रण मात्र हैं।
मेरी ही इच्छा से
चलते- फिरते, बोलते-बैठते हैं
समस्त पात्र।
और मेरी ही इच्छा से
स्थित भी होते हैं।
मेरी ही इच्छा से
बहने लगती है
सरस-सलिल।
फैल जाती है दावानल
सागर उगलने लगते हैं
लावा
और पल में ही
सजने लगतीं हैं शहनाईयां।
मैं ही समस्त
भाग्य-दुर्भाग्य का विधाता हूँ।
हाँ, निश्चय ही
मैं ही ब्रह्मा हूँ
अपनी दुनिया का!
[अजय त्यागी]
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Tuesday, 12 February 2013
अहम् ब्रह्मास्मि:
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...मान लिया जी !
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ReplyDeleteमाफ करें सर जी, कामेंट गलती से हट गया है :(
DeleteMain samay hu
Deleteसर्व प्रथम तो मेरे इस तुच्छ से ब्लाग पर अपनी कृपा दृष्टि डालने डालने के लिए हार्दिक आभार!
ReplyDeleteजहाँ तक आपके प्रश्न की बात है तो "मैं ब्रह्मा हूँ /अपनी दुनिया का!(नमनपूर्वक)" इन शब्दों को पैर से सर तक खुद अपने ऊपर ओढ़कर गुनगुनाते हुए यदि आपको अपने भीतर कुछ (कुछ भी)महसूस हुआ हो तो आपके प्रश्न का उत्तर है- that's it. और यदि कुछ भी महसूस ना हुआ हो तो उत्तर है- Nothing.
मुझे संदेह हो रहा है कि शायद आने इस रचना में प्रयुक्त शब्द 'मैं' को 'अजय' पढ लिया है। अजय इन शब्दों का संकलनकर्ता है। 'मैं' तो पाठक को बनना पडेगा तभी बहुत सारे अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर सामने आ सकते हैं
सुन्दर भाव गहन !
ReplyDeleteधन्यवाद, सर जी!
Deleteआपके इस ब्लॉग को देखकर ही आपकी रुचियों का बोध होता है ..
ReplyDeleteप्रणाम अजय भाई !
आभार, सर जी! आपके मार्गदर्शन की अपेक्षा रहेगी!
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