Saturday 3 July 2021

चिंकू-टू, द फ्लाइंग डिटेक्टिव

प्रोफेसर एक्स, लैबोरेटरी में किसी प्रयोग में व्यस्त थे। उनके सहयोगी रमन दूसरे विद्यार्थियों को कवर कर रहे थे। अतः प्रोफेसर एक्स अपने आसपास की सभी गतिविधियों से निर्पेक्ष अपने कार्य को उसके परिणाम की ओर बढ़ा रहे थे। उसी समय पुलिस इन्स्पेक्टर ने दो कॉन्स्टेबलों के साथ लैबोरेटरी में प्रवेश किया, तो सभी की दृष्टि उस ओर उठ गई। परन्तु प्रोफेसर को इसका भान तक न हुआ।इन्स्पेक्टर ने आगे बढ़कर प्रोफ़ेसर का कन्धा पकड़ते हुए कहा - "सर......!"

- "रमन से पूछो!" प्रोफ़ेसर ने बिना पीछे मुड़े ही कह दिया। 

परन्तु इन्स्पेक्टर के हाथ का दबाव निरन्तर बढ़ता जा रहा था जिससे प्रोफ़ेसर कुछ विचलित हुए और थोड़ा झुँझलाकर पीछे मुड़ते हुए बोले - "तुम लोग क्यों बार-बार मुझे डिस्टर्ब........अरे
इन्स्पेक्टर, आप यहाँ!? आज आपका कोई मुल्जिम भागकर इस ओर आ गया क्या? यदि आपको ऐसा संदेह है तो कॉलेज के दूसरे कमरों में खोजो भई......यहाँ लैबोरेट्री में आकर भला मुल्जिमम क्या करेगा।" प्रोफेसर ने हँसते हुए कहा।

- "परन्तु मुल्जिम तो यहीं है।"

- "ठीक है, फिर यहाँ खोज लीजिए।" अपने उपकरण की ओर घूमते हुए प्रोफ़ेसर ने लापरवाही के साथ कहा।

- "आपके नाम का गिरफ्तारी वारन्ट है, चलिए.......।"

इस बार प्रोफ़ेसर चौंके - "क्या बकते हो इंस्पेक्टर?"

- "आप पर कॉलेज का रिकॉर्ड नष्ट करने और लेबोरेट्री के कीमती उपकरण चुराने का आरोप है......और यह रहा गिरफ्तारी वारन्ट......।"

इससे पहले कि प्रोफेसर कुछ और बोलते इन्स्पेक्टर ने हथकड़ी लगा दी और फिर अपने साथ गाड़ी पर बैठाकर पुलिस स्टेशन की ओर रवाना हो गया।

पुलिस गाड़ी के जाते ही रमन भी लैबोरेट्री से बाहर आया और प्रोफेसर की गाड़ी लेकर कुछ ही देर में प्रोफ़ेसर की जमानत का प्रबन्ध करके पुलिस स्टेशन पहुँच गया। 

पुलिस स्टेशन से निकलकर प्रोफेसर बिना रमन से कुछ बोले सीधे कॉलेज पहुँचे और प्रिन्सिपल के सामने अपना इस्तीफा पटक दिया। गुस्से से चेहरा तमतमा रह था तथा आँखों से क्रोध की ज्वाला निकल रही थी। 

फिर गरजते हुए बोले - "यही चाहते थे ना तुम.......मैं जा रहा हूँ। परन्तु बहुत जल्द लौटने के लिए.........।"
 
ऑफिस से निकल कर प्रोफेसर एक्स सीधे तीर की भाँति घर पहुँचे और घर के सभी सदस्यों को चेतावनी देकर कि जब तक वे स्वयं लैबोरेट्री का द्वार खोलकर बाहर नहीं आते, तब तक घर का कोई भी सदस्य अथवा कोई अन्य व्यक्ति उन्हें डिस्टर्ब करने का प्रयास ना करे। चाहे कितना भी समय बीत जाए, वह घर के ऊपरी तल पर बनी अपनी प्रयोगशाला में घुस गए और द्वार अन्दर से बन्द कर लिया।

प्रोफेसर एक्स प्रोफ़ेसर वाय से सीनियर थे। प्रोफ़ेसर वाय को उनके सीनियर होने और अत्यधिक सम्मान होने के कारण उनसे बहुत इर्ष्या थी। वह सदैव उन्हें गलत साबित कर नीचा दिखाने के उपाय खोजता रहता था। कुछ ही दिन पहले जब प्रिंसिपल पद के लिए उन्हें चुना जाने वाला था तो प्रोफेसर वाय अपनी धोखाधड़ी और मक्कारी के बल पर स्वयं प्रिंसिपल बन बैठा। 

प्रोफ़ेसर एक्स तो इस असह्य घटना को भी लगभग भुलाकर फिर अपने कार्य में जुट गए थे, परन्तु आज जब उसने नीचता की सभी सीमाओं को लाँघ दिया तो वे भी आपे से बाहर हो गए। उनका हृदय बदले की भावना से भर उठा। 

इस समय प्रोफेसर एक्स अपने लैबोरेट्री में बड़ी ही बेचैनी की स्थिति में इधर-उधर घूम रहे थे। कानों में इंस्पेक्टर के शब्द बराबर गूँज रहे थे और ह्रदय में तीर की भाँति चुभ रहे थे। वे काफी देर तक इसी प्रकार घूमते रहे और अंत में एक कुर्सी पर बैठ गए। सिर मेज पर पटक दिया। उन्हें न तो अपनी पदोन्नति नहीं होने का कोई दुःख था, न ही नौकरी छोड़ने का....। उन्हें दुःख केवल अपना सम्मान चौपट हो जाने का था। इसी क्षण उन्होंने निर्णय लिया कि जब तक वह अपना खोया सम्मान पुनः प्राप्त नहीं कर लेते तब तक लैबोरेट्री के बाहर कदम नहीं रखेंगे। 

उन्होंने अपना सिर ऊपर उठाया, चेहरे पर दृढ़ता की झलक थी। उठे और उठकर लैबोरेट्री से संलग्न बाथरूम में घुस गए। थोड़ी देर में वे तरोताजा होकर बाहर निकले। एक बार प्रणायाम किया और बड़े ही शान्त चित से एक कुर्सी पर बैठ गए।

कई घंटे बीत गए परन्तु कोई ऐसा उपाय नहीं सूझा जिससे उनकी समस्या का समाधान हो सके। वह कभी उठकर चहल-कदमी करने लगते तो अभी कोई किताब उठाकर उसके प्रष्ठों पर कुछ ढूँढते...…कभी हवा में कोई मॉडल बनाते तो कभी कम्प्यूटर पर......कभी कागज पर कोई रेखाचित्र बनाते और फिर कम्प्यूटर द्वारा उसकी और अपने विचारों की सम्भावना पर विचार करते। परन्तु असंतुष्टि के भाव लिए फिर कुर्सी पर बैठ जाते और फिर कुछ नया सोचने की प्रयास करते।

अचानक एक आवाज ने उनकी इस चिन्तनधारा को रोक कर दिया- ची-ची-ची-ची-चूँ-चूँ-चीं-चीं.......उनकी दृष्टि एकदम लैबोरेट्री के रोशनदान की ओर घूम गई। वहाँ एक छोटी चिड़िया काफी देर से बैठी थी और प्रोफेसर जोकि अपनी ही धुन में खोए हुए थे, उनका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करना चाहती थी।

प्रोफेसर रोज सुबह लैबोरेट्री के बाहर हल्की धूप में बैठकर अपना कार्य करते थे। इसी बीच वहाँ कुछ चिड़ियाँ भी आ जातीं थीं, तो वह कुछ चुग्गा उन्हें डाल देते थे। इस प्रकार उन चिड़ियों से उनकी अच्छी मित्रता चल रही थी। आज जब चिड़ियों को प्रोफेसर बाहर दिखाई न पड़े तो शायद बाकी चिड़ियाँ तो प्रतीक्षा करके चली गई परन्तु यह एक चिड़िया उन्हें खोजते हुए यहाँ तक आ गई। 

प्रोफेसर उसे बहुत प्यार करते थे। इसका कारण था, जब वह पहली बार दूसरी चिड़ियों के साथ उनके पास आई थी तो बहुत छोटा बच्चा ही थी। प्रोफेसर ने उसे पकड़कर प्यार किया और नाम रखा था "चिंकू"।

- "अरे चिंकू.......!"  प्रोफेसर ने उसे देखते ही कलाई पर बँधी घड़ी पर नजर डालते हुए कहा।

नौ बज चुके थे। अर्थात रात बीत कर दिन का भी काफी चढ़ चुका था। चिंकू उछलकर उनके कंधे पर बैठ गया और एक बार फिर "चीं-चीं-चूँ-चूँ....." की टेर लगा दी। मानो उसने पूछा हो कि आज बाहर क्यों नहीं आये।

- "हमारी विवशता है, चिंकू। हम अभी बाहर नहीं जा सकते।" प्रोफेसर ने चिंकू को पकड़ कर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा।

फिर अपने टेबल पर अनाज के दाने डाल दिये। चिंकू फुदक-फुदक कर उन्हें खाने लगा। प्रोफेसर कुर्सी पर बैठे उसे निहार रहे थे। तभी उनके दिमाग में विचार कौंधा  कि क्या चिंकू उनके लिए एक डिटेक्टिव का कार्य नहीं कर सकता........?

बस फिर क्या था, उन्होंने प्लानिंग शुरू कर दी। पहले सोचा की एक माइक्रोफोन युक्त ऐसा ट्रांसमीटर बनाया जाए जो चिंटू के पंखों में छिप जाए। परन्तु इसकी रेंज और उससे प्राप्त आवाजों को पहचानने की समस्या के आगे यह योजना असफल रही। फिर नयी योजना बननी आरम्भ हुई........। 

इसी प्रकार योजनाएं बनती रही और बिगड़ती रहीं। दो दिन और बीत गये। इस बीच चिंकू भी उनके साथ लेबोरेट्री में ही था। प्रोफेसर खाने के नाम पर कुछ गोलियों और मेवों का प्रयोग करते और चिंकू अनाज के दाने चुगता, इधर उधर उड़ता-फुदकता रहता। प्रोफेसर कुछ थक जाते तो भाँति-भाँति से उनका मनोरन्जन करता, बातें घड़ता और फिर चुपचाप पंखों में सर छुपाकर बैठ जाता। 

तीसरे दिन जब प्रोफ़ेसर निराशा की स्थिति में इधर-उधर घूम रहे थे तो मस्तिष्क में आया कि चिंकू के बजाय वे स्वयं चिंकू के जैसा ही एक फ्लाइंग रोबोट क्यों न बनायें.......!

इतना सोचना था कि एक क्षण में ही पूरी योजना उनके मानस पटल पर घूम गई और फिर पूरे दस दिन और रात के अथक परिश्रम के बाद चिंकू का जुड़वा भाई चिंकू-टू अपने प्रथम परीक्षण के लिए तैयार था।

 चिंकू-टू एक अत्यन्त हल्की प्लास्टिक से निर्मित चिंकू का प्रतिरूप था। जो चिंकू की भाँति उड़ सकता था तथा चल-फिर सकता था। प्रोफेसर ने उसे आँखों के स्थान पर दो सूक्ष्म कैमरे तथा कानों के स्थान पर अत्यन्त सम्वेदनशील तथा सुक्ष्म माइक्रोफोन दिये थे। ऊर्जा के लिए उसके भीतर एक शक्तिशाली बैटरी थी तथा इसके पंखों में सौर ऊर्जा ग्रहण करने के लिए सौर सेल भी लगे थे। शेष सारा शरीर एक शक्तिशाली ट्रान्समीटर था। जो कैमरा व माइक्रोफोन से प्राप्त संकेतों को रेडियो संकेतों में परिवर्तित करके पूँछ जोकि एक शक्तिशाली एंटीना का कार्य करती थी, के द्वारा वायुमण्डल में प्रेषित कर देता। जिन्हें प्रोफेसर लेबोरेटरी की छत पर लगे विशालकाय एंटीना पर प्राप्त करके रिसीवर पर देख व सुन सकते थे। इसका अंतिम नियन्त्रण प्रोफेसर रिमोट व कम्प्यूटर की मदद से कर सकते थे।

इसका पहला परीक्षण चिंकू के साथ होना था। अतः प्रोफेसर ने उसे टेबल पर रखा, फिर चिंकू को बुलाया और उसके सामने टेबल पर ही छोड़ दिया। उसे देखते ही पहले तो चिंकू ने "चीं-चीं-चुँ-चुँ...." कर शोर मचाया परन्तु चिंकू-टू के शरीर में कोई हलचल न होने पर फुदककर उसके पास गया और उसे चोंच मारने लगा। इसी समय प्रोफेसर ने, जोकि अलग कुर्सी पर बैठे यह प्रहसन देख रहे थे, मुस्कुराते हुए हाथ में पकड़े रिमोट का बटन दबा दिया। तुरन्त ही चिंकू-टू भी सक्रिय गया और उसने भी चिंकू की भाँति शोर मचाया। फुदककर पंख फड़फड़ाये और फिर लैबोरेटरी के अन्दर सफलतापूर्वक उड़ने लगा।

चिंकू भी साथ-साथ ही उड़ रहा था। दोनों में इतनी समानता थी कि एकबार प्रोफेसर को भी ध्यान नहीं रहा कि वह कौन से चिंकू को कन्ट्रोल कर रहे हैं। इस धोखे का परिणाम हुआ कि चिंकू-टू दीवार से टकराया और गिर पड़ा।

प्रोफ़ेसर की आँखों में सफलता की स्पष्ट चमक थी। पहला परीक्षण पूरी तरह सफल रहा। उन्हें विश्वास हो गया कि जब चिंकू ही नहीं पहचान सका कि वह किसी जीवित चिड़िया के साथ नहीं, एक मशीनी चिड़िया के साथ खेल रहा है तो कोई और क्या पहचानेगा। उन्होंने तुरन्त चिंकू-टू के खुले आकाश में परीक्षण की तैयारी आरम्भ कर दी।

थोड़ी देर बाद चिंकू-टू अकेले ही लैबोरेट्री के रोशनदान से निकलकर खुले आकाश में उड़ान भरा था और प्रोफ़ेसर उसकी आँखों से बाहर की दुनिया का दर्शण लैबोरेट्री में रखे रिसिवर के स्क्रीन पर कर रहे थे।

प्रोफ़ेसर के निर्देशानुसार उड़ते हुए चिंकू-टू रमन के घर पहुँचा। एक साधारण चिड़िया की भाँति उसने खिड़की के द्वारा एक कमरे में प्रवेश किया। जहाँ रमन अभी तक बिस्तर में पड़े नींद का आनन्द ले रहे थे। पहले चिंकू-टू ने पूरे कमरे में दृष्टि घुमाई। अर्थात लैबोरेट्री में प्रोफेसर ने अपने स्क्रीन पर पूरे कमरे का निरीक्षण किया। फिर चिंकू-टू रमन के हाथ में चोट मारने लगा, परन्तु रमन के न जागने पर उसने सोच से एक घातक वार किया। जिसने हाथ में घाव हो गया और रक्त बहने लगा। रमन झुँझलाकर कर उठे और जैसे चिन्कू-टूू को पकड़ने के लिए झपटे, टेलीफोन की घन्टी गूँज उठी। उन्होंने चिंकू को घूरते हुए फोन उठाया तो एकदम आवाज आई - "गुड मॉर्निंग रामन......।"

- "क....कौन, प्रोफेसर!!!"

- "अभी भी नींद नहीं खुली क्या?"

- "न...नींद! आपको कैसे पता कि मैं सो रहा था!?

- "हमें तो यह भी पता है कि तुम पायजामा पहने खड़े हो और फोन तुमने अपने दाँये कान पर लगाया है। वैसे तुम्हारे बाँएं हाथ से बहने वाला रक्त तुम्हारे सोने का अच्छा प्रमाण है।"

- "व्हाट.....यू मीन.....!?!?!?

- "यह मीन-वीन बाद में करना, अभी तुम तुरन्त यहाँ चले आओ।"

बीस मिनट पश्चात ही रमन लैबोरेट्री में थे। प्रोफेसर एक्स ने एक पल भी व्यर्थ गवाँए बिना रमन को अपने नये आविष्कार की संपूर्ण जानकारी दी।
थोड़ी ही देर बाद रमन के हाथ कम्प्यूटर की-बोर्ड पर थे और चिंकू-टू एक बार फिर खुले आकाश में उड़ान भर रहा था। प्रोफेसर रिसीवर स्क्रीन के दृश्यों के अनुसार रमन को आवश्यक निर्देश दे रहे थे। 

प्रोफेसर सबसे पहले कॉलेज लेबोरेट्री से चोरी हुए उपकरणों के संबंध में जानकारी एकत्र करना चाहते थे। वैसे रमन ने इसके बारे में बहुत कुछ पहले ही बता दिया था, फिर भी एक बार वे स्वयं लेबोरेट्री का गहन निरिक्षण करना चाहते थे। अतः चिंकू-टू इसबार सीधे कॉलेज पहुँचा। लेबोरेट्री का द्वार तो बंद था परन्तु एक छोटी खिड़की में से प्रवेश मिल गया। तब उसने अपनी पूर्ण नियन्त्रित दृष्टि द्वारा लैबोरेट्री में स्थित प्रत्येक छोटी बड़ी चीज को घूरना आरम्भ कर दिया। परन्तु वहाँ कोई विशेष बात सामने नहीं आई। सिवाय इसके कि लगभग एक लाख रुपये मूल्य के महत्वपूर्ण उपकरण और अन्य उपयोगी सामग्री वहाँ से गायब थी। उसी समय "चर्र..." की आवाज के साथ लैबोरेट्री का द्वार खुला और दो व्यक्ति बातचीत करते हुए अन्दर प्रविष्ट हुए। एक कह रहा था, "पता नहीं, बस इतना ही सुना है कि यहाँ से जाकर सीधे अपनी लैबोरेट्री में चले गए थे और आज तक लैबोरेट्री का द्वार ज्यों का त्यों बंद है।"

- "आश्चर्य है! उन्हें किसी ने भी बाहर निकालने का प्रयास नहीं किया....... कुछ भी हो ऐसे नेक और भले व्यक्ति पर ऐसा घृणित आरोप लगाकर प्रिंसिपल ने अच्छा नहीं किया......।" दूसरा बोला

- "पता है इस समय प्रिंसिपल कहाँ है?"

- "कहाँ?

- "पता चला है कुछ मेहमानों के साथ घर में मीटिंग चल रही है।"

इतना सुनते ही चिंकू-टू फुर्र से उड़कर बाहर आया और पहुँच गया प्रिंसिपल प्रोफेसर वाय के घर.....। फिर उसने एक के बाद एक सभी कमरों में खोजबीन शुरू कर दी। किन्तु कुछ भी हाथ न लगा। अंत में वह ऊपरी तल पर पहुँचा जहाँ केवल एक कमरा था। उसकी सभी खिड़कियों रोशनदानों में शीशे चढ़े थे। द्वार भी बन्द था। काफी देर झक मारने के पश्चात भी जब उसे कमरे में प्रवेश ना मिला तो थक-हार कर वह एक खिड़की के पास गमले में लगे पौधे की डाल पर बैठ कर झूलने लगा। इसी समय उसकी दृष्टि खिड़की के शीशे पर पड़ी जो शायद किसी पत्थर आदि की चोट से चटक गया था। परन्तु काँच के छोटे-छोटे टुकड़े अभी भी अपने स्थान पर फँसे हुए थे। चिंकू-टू फुदक कर चटके हुए शीशे पर चिपक कर बैठ गया। फिर उसने अपनी चोंच के प्रहार से काँच के छोटे-छोटे टुकड़ों को बाहर निकाल दिया और किसी प्रकार अपने घुसने योग्य मार्ग बना लिया। भीतर पहुँच कर वह खिड़की की दीवार से चिपक कर इस प्रकार बैठ गया कि वह पूरे कमरे मैं अपनी दृष्टि घुमा सके। इस समय उसने देखा कि कमरे में प्रोफ़ेसर वाय के साथ वहाँ दो अन्य व्यक्ति वार्तालाप कर रहे हैं। प्रोफ़ेसर वाय उन दोनों को संबोधित करते हुए कह रहे थे, "आप लोग बिल्कुल निश्चिंत होकर अपने प्रयोग करते जाइए तथा जो भी सामग्री चाहिए आप बस उसकी सूचना मुझे दे दीजिए। मैं जल्दी से जल्दी आपके इस कार्य को पूरा देखना चाहता हूँ।"

- "ठीक है सर, यह लीजिए.....।" उनमें से एक व्यक्ति ने एक बैग प्रोफेसर वाय की ओर बढ़ाते हुए कहा। 

- "पूरे सत्तर हजार हैं। पचास हजार पिछले तथा बीस हजार नए काम का एडवांस.....।"

- "बोलो क्या-क्या चाहिए?"

- "यह लीजिये, लिस्ट तैयार सर!"

- "ठीक है, मैं दस दिन में इसका प्रबंध करता हूँ। बाकी बातें भी तभी होंगी।" सूची पर एक दृष्ठि डालते हुए प्रोफेसर-वाय ने कहा और उठ खड़े हुए।

चिंकू-टू भी वहाँ से निकलकर वापस प्रोफेसर-एक्स के पास पहुँच गया। लैबोरेट्री में घुसते ही चिंकू ने उसे देख लिया और "चूँ-चूँ-चीं-चीं" करके शोर मचाने लगा। परन्तु जब प्रोफेसर ने उसे अनदेखा कर चिंकू-टू को पकड़ लिया तो वह तेजी से चहकते हुए प्रोफेसर के सर व कंधे पर फुदकने लगा। तब प्रोफेसर-एक्स ने चिंकू-टू को मेज पर छोड़ा और उसे पकड़ कर बातें करने लगे.......।

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