- शून्य क्या है ?
- शून्य शब्द है।
- शब्द क्या है ?
- शब्द ओंकार है।
- ओंकार क्या है ?
- सहस्रदल पद्म का विस्तार ही ओंकार है।
- सहस्रदल पद्म क्या है ?
- विष्णु नाभि का विस्तार सहस्रदल पद्म है।
- विष्णु नाभि क्या है ?
- विष्णु नाभि विष्णु का शक्ति केंद्र है।
- विष्णु क्या है ?
- विष्णु परब्रह्म का एक अंश हैं और सृष्टि का आदि और अंत भी हैं।
- परब्रह्म क्या है ?
- परब्रह्म मानव चेतना से परे है। अर्थात मानव चेतना उसकी व्याख्या नहीं कर सकती। क्योंकि परब्रह्म तक पहुँचकर मानव चेतना उसी में विलीन हो जाती है। सृष्टि के समस्त बंधनों, प्रारब्धों, कर्मों, कर्मफलों से मुक्त होकर ब्रह्ममय होकर उसी की भाँति सर्वव्यापी हो जाती है। यह स्थति प्राप्त करना ही अबतक ज्ञात जीवन का अंतिम लक्ष्य भी है।
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Thursday, 16 February 2017
संसार सारं(एक प्रयास)
Wednesday, 8 February 2017
वास्तविक आयु
एक स्त्री बडी धर्मपरायणा थी। सत्संग करती, साधू-संतों की सच्चे मन से सेवा करती, घर बाहर सभी जगह पूर्णमनोयोग से अपने धर्म का समुचित पालन करती।
एक बार उसके निवास पर कोई महात्मा पधारे। स्त्री के सेवा भाव से महात्मा बडे संतुष्ट हुए। फिर उनकी धर्म-शास्त्रों पर चर्चा होने लगी। स्त्री की विद्वत्तापूर्ण बातें सुनकर महात्मा ने पूछा - पुत्री, तुम्हारी आयु क्या है?
स्त्री- बारह वर्ष, महाराज!
- तुम्हारे पति की?
- जी, दस वर्ष, महाराज!
- और पुत्री, तुम्हारी सास की आयु ?
- महाराज, यही कोई चार वर्ष!
महात्मा (आश्चर्य से) - और पुत्री तुम्हारे ससुर की आयु!?
स्त्री - महारज, वह तो अभी पैदा ही नहीं हुए हैं!
महात्मा चकरा गये। बोले - तुम झूठ तो नहीं बोल सकतीं परंतु यह सब क्या रहस्य है?
तब स्त्री ने उन्हें समझाकर कहा की महाराज इंसान की आयु तो उतनी ही मानने योग्य होती है जितनी वह स्वधर्म पालन और परमार्थ में प्रयोग करे। बाकि जीवन तो बस ईंट-पत्थर और पशु-पक्षियों के समान ही है। जिनके बारे में आपने पूछा वे रिश्ते तो बस हम इंसानों में ही होते है सो मैंने उनकी सच्ची आयु बता दी।
मेरे आने से पूर्व यहां सब धनपशु ही थे। दस वर्ष पूर्व पति ने और चार वर्ष पूर्व सास ने धर्म मार्ग पहचाना और उस पर चलने लगे, तो उतनी ही उनकी आयु मैंने बताई है। ससुर अभी भी वैसे ही धनपशु होकर जी रहे हैं तो मैं उनकी क्या आयु बताऊँ!