Friday, 2 January 2015

गम-ए-मोती

हँसते-मुस्कुराते चला था मैं वहाँ से
मजे लूटने           इस   जहाँ    के।
मगर                          अफसोस
खुद ही लुट रहा मैं    दीवाना  यहाँ।

ना पूछो कि किस-किसने लूटा
मुझे तो मेरे     अपनों  ने लूटा।

अपनों ने लूटा,     बेगानों लूटा
यारों ने लूटा,  मक्कारों ने लूटा
चोरों ने लूटा, धनकुबेरों ने लूटा
दरिया ने लूटा, किनारों ने लूटा
मुझे तो मेरी नौका ने भी   लूटा.......

पतझड़ ने लूटा,   बहारों ने लूटा
मद की रिमझिम, फुहारों ने लूटा
सागर ने लूटा,       मेघों ने लूटा
फूलों ने लूटा,   कलियों ने लूटा
मुझे तो चमन के रखवालों ने भी लूटा......

चंदा ने लूटा,     सितारों ने लूटा
शरद की बहकतीं, बयारों ने लूटा
अंधेरों ने लूटा,  उजालों ने लूटा
ख्वाबों ने लूटा,  छलावों ने लूटा
ओरों की क्या कहूँ           यारों
मुझे तो उस बनाने वाले ने भी लूटा.......

मैं लुटता रहा,       मुस्कुराता रहा
गम-ए-मोती, जिगर में सजाता रहा
ये मोती,             बड़े हैं प्यारे मुझे
पाएं हैं,     सबकुछ लुटाकर ये मैंने
ना दूँगा उधार,       यदि कोई माँगे
डरता हूँ, इनसे बिछुड़कर      कहीं
खो न जाऊँ, मैं भी इस     जहाँ में......

ये मोती ही तो अब, पहचान हैं मेरी
ये मोती ही तो अब,  शान   हैं मेरी
इन मोती में ही अब, जान है भी मेरी
इन मोती से ही सजेगा ज़नाज़ा मेरा......

इन्हें तो संग            ले जाऊँगा मैं
उस                              जहाँ में
हँसते-मुस्कुराते चला था मैं जहाँ से
मजे लूटने                 इस जहाँ के.........

No comments:

Post a Comment