इक रोज कहा मैंने अपने खुदा से
ए-मालिक सुना है, तू बड़ा चमत्कारी है!
तूने सितारे बनाये हैं,
इक अजूबा चाँद भी बनाया है!
तू मुझे भी इंसान बना दे तो जानूँ
अपने इस जहाँ की सैर करा दे तो जानूँ!
रुह बनकर रहता था मैं उस जमाने में
पड़ा रहता था इक अजब से मयखाने में।
अँधेरा ही अँधेरा था बस वहाँ
इसीलिये मैंने खुदा से कहा-
तनिक अपनी रोशनी मुझे भी दिखा दे तो जानूँ
तू मुझे भी उड़ना सिखा दे तो जानूँ!
खुदा हौले से मुस्कराया
शायद मेरी फरियाद पर उसे थोड़ा रहम आया।
फिर उसने अपना जादुई डंडा घुमाकर
आजाद कर दिया मुझे उस दरिखाने से।
मैं भी निकल पड़ा उस अजूबे जहाँ की सैर करने
मगर इक रोज फिर राह में खुदा मुझे मिल गया।
हाल-चाल पूछा तो यूँ कहने लगा मैं खुदा से-
ए-मालिक! तू तो वाकई बड़ा करामाती है,
तेरे इन चाँद-सितारों का ना कोई सानी है!
मगर मुझे भी एक छोटी सी जमीं बना दे तो जानूँ
मेरा भी इक दिलबर मिला दे तो जानूँ!
खुदा ने गौर से मुझे देखा
शायद मेरी मंशा वह भाँप गया।
फिर जेब से इक गैंद निकाली
और उँगलियों पर नचाकर मेरे पैरों तले छोड़ दी।
छोटे-छोटे कदमों से उसे मैं नापने लगा,
राह में न जाने किस-किस से मिलता बिछुड़ता रहा।
इक रोज यूँ ही चला जा रहा था मैं कुछ सोचते हुए,
कि राह में फिर खुदा दिख गया।
पूछने लगा खुदा मुझे यूँ सोचते देखकर-
मुझे बता मेरे बच्चे, तेरा क्या गम है!
मेरी इस दुनिया में वो क्या चीज कम है
जिसकी वजह से तेरी आँखें आज यूँ नम हैं!
यूँ कहने लगा तब मैं खुदा से-
ए-मालिक! तू बड़ा दरियादिल है!
मैं तेरे इन चाँद-सितारों को लाकर
अपनी इस जमीं को सजाना चाहता हूँ,
इसे जन्नत से भी सुंदर
बनाना चाहता हूँ।
तनिक विज्ञान मुझे दे दे तो जानूँ,
तु मुझ पर मेहरबान हो जाय तो जानूँ!
सुनकर मेरी फरियाद, खुदा थोड़ा चकराया
शायद मेरी अर्ज पर उसे गुस्सा भी आया।
फिर कहने लगा मुझे यूँ समझाकर-
ऐसी जिद्द मत कर ए मेरे नूर-ए-जिगर!
विज्ञान कोई मामूली बच्चों का खिलौना नहीं है,
इसको काबू में रख सके, तुझमें अभी वो धार नहीं है।
बड़ी शिद्दत से बनाया है, मैने इसको अपना गुलाम
वर्ना मिटा डाले यह तो, पल में सारा नाम-ओ-निशां।
मगर मैं,
फिर भी अपनी जिद्द पर अड़ा रहा,
तो जेब से इक डिबिया निकालकर
खुदा यूँ कहने लगा-
जब तक सितारे तुझसे न पूछें टिमटिमाने के वास्ते/
जब तक चाँद तुझसे न पूछे चाँदनी फैलाने के वास्ते/
जब तक बादल तुझसे न माँगें पानी-पीने के वास्ते /
जब तक हवा तुझसे न माँगे आगे बढ़ने के रास्ते /
तब तक ए मेरे बच्चे, इसे रखना यूँ ही सहेज कर
छेड़खानी न करना इसके साथ कभी भूलकर।
डिबिया लेकर मैं ज्यों कुछ कदम आगे बढ़ा
कि मेरे दिल में यह ख्याल आया-
यह विज्ञान दिखता है कैसा, तनिक देखूँ तो उघाड़ कर।
सदियों से पड़ा है बंद, बेसुध होगा या पड़ा होगा अलसाया।
झट से कर दूँगा बंद, गर थोड़ा भी गुर्राया।
ऐसा कर विचार ज्यों ही मैंने ढक्कन थोड़ा सा उठाया,
इक गहरे धुएँ का बादल सा निकलकर बाहर आया।
और छाने लगा मुझपर एक गज़ब का नशा बनकर,
मैं भी झूमने लगा अपनी तमाम सुधबुध खोकर।
और फिर,
और फिर इक दिन जब मुझे होश आया
तो हर तरफ था बस,
लहू-ओ-राख़ के ढ़ेरों का साया।
ना थी वो जन्नत सी जमीं, ना वो चाँद-सितारा
हर तरफ था बस खूँ का मंजर खूँ का नज़ारा।
रूह तक काँप उठी मेरी, देखा जो यह आलम सारा।
रो-रोकर मैंने फिर से खुदा को पुकारा!
यूँ कहने लगा खुदा तब दूर फ़लक पर खड़ा होकर-
ए-मूर्ख क्यूँ रोता है अब आहें भरकर!
कितना समझाया था मैंने तुझे,मगर तूने मेरी इक बात न मानी।
और आज खुद ही लिख डाली, अपनी बरबादी की कहानी।
मैंने तो तुझको बनाया था इंसान
मगर इस विज्ञान ने बना डाला है तुझको हैवान।
अब तो रहम कर ए मेरे रहीम-ओ-रहमान
इक बार फिर बना दे, मुझको तू इंसान!
कर ले कबूल, मेरी यह अंतिम फरियाद
तो मानूँ तुझे, तू है सबका मददगार!
थोड़ा ओर सब्र कर अरे बदनसीब
अंत ही आ पहुँचा तेरा, अब तो तेरे करीब।
ना बची वो जमीं, ना रहा वो आसमाँ
फिर क्या करेगा तू,अब बनकर इंसाँ।
कुछ ही पलों का तो बाकी है अब यह निशां।
तू भी चले आना फिर वहीं,रहता था पहले जहाँ।
दे-देकर दुहाई, हाथ पसारे मैं रोता-गिड़गिड़ाता रहा।
मगर बेरहम खुदा, दूर आसमाँ में जाकर कहीं सो गया।
तब से हर पल मर-मरकर जी रहा हूँ
अपनी लगाई आग में खुद ही जल रहा हूँ।
इक आस बाकी है अभी दिल के किसी कोने में
कि इक दिन आएगा खुदा,मुझपर तरस खाकर
और पकड़ ले जाएगा इसे,
अपने झोले में डालकर।
तब सींचूँगा इस जमीं को
सिर्फ प्रेम के जल से।
रोपूँगा प्रेम के पौधे,
जिनपर मुस्कराएंगीं प्रेम की कलियाँ
प्रेम का गुलाल लेकर।
लहराऐंगीं घटाऐं
प्रेम का आँचल बनकर।
बरसेंगे प्रेम के मोती
और महक उठेंगीं फिज़ाऐं,
प्रेम का श्वास लेकर
प्रेम का श्वास लेकर
प्रेम का श्वास लेकर...............
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Sunday, 27 December 2015
मुझे भी इंसान बना दे
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