Sunday, 26 April 2015

खुशियाँ रात मना रहा था 'भारत'

खुशियाँ रात, मना रहा था भारत
गीत खुशी के,  गा रहा था भारत
बावन पत्तों में,       गाँठ बरस की
झूम-झूमकर, लगा रहा था भारत
खुशियाँ रात, मना रहा था भारत

सपने भोर के,   खुलने लगे थे
बिछुड़े रात जो, मिलने लगे थे
नये रंगों में,         रंगने लगे थे
उमंगें दिलों में,    भरने लगे थे

रजनीगन्धा,   कुम्हलाया नहीं था
कमल अभी,   मुस्काया  नहीं था
खग-कुल चमन में, आया नहीं था
मृग अभी,       मस्ताया  नहीं था

खुशियाँ मगर, मना रहा था भारत
सपने नये,     सजा रहा था भारत
पुष्प-पोटली,          बाँध-बाँधकर
तिरंगा ऊँचा,  चढ़ा रहा था भारत
खुशियाँ रात, मना रहा था  भारत

खींच डोर,   तिरंगा फहराया
क्षण-भर था, भारत मुस्काया
मगर,   रखा था जो प्रेम-पुष्प
रक्त-पुष्प बन,  धरा पर आया

जण-गण-मण,      नहीं पड़ा सुनाई
चहुँ ओर से, बस, चीत्कार ही आई
पलभर में,             सन्नाटा छाया
महाप्रलय का,    ऐसा झोंका आया

राजपथ में,   मगर नाच रहा था भारत
तिरंगा किले पर, फहरा रहा था भारत
निज खंड़हर में,              दबा-भिंचा
निश्चल पड़ा,     कराह रहा था भारत
खुशियाँ रात,       मना रहा था भारत

सुनो जरा,            ओ सुनने वालों
अब तो जरा तुम,      कान लगा लो
जनसंख्या की,  इस आँधी को रोको
और आने वाली, नस्लों को बचा लो

कंक्रीट के,       इन वनों को काटो
और धरा को,      बसंती रंग डालो
ऐसा दिवस,         ना देखे  भारत
हो सके तो, बस यह वचन उठा लो

ताकि, खुशियाँ रोज मनाये यह भारत
तिरंगा गगन में, फहराये     यह भारत
सारी दुनिया,          कदम चूमे इसके
इतना नाम,     कमाये यह       भारत
खुशियाँ रोज, मनाये   यह       भारत
खुशियाँ रोज,     मनाये यह     भारत ................

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(ये आर्त उदगार २६ जनवरी २००१ की सुबह गुजरात में आए भीषण भूकंप की त्रासदी से पीड़ित मन में उसी शाम आए थे। नेपाल की विपदा ने पुराने घाव हरे कर दिए)